बुधवार को बागेशवर के कपकोट के सुमगढ में सरस्वती शिशु मंदिर में बादल फटने के कारण स्कूल के मलबे मे 18 मासूमों की जाने चली गयी टी.वी चैनलों में आ रही खबरे, दिल दहलता है इस तरह की खबरों से जब प्रकुति का कहर बरपता है तो कुछ नही बचता ।जिन्दगी उन लोगो की क्या होती है? जो इस तरह की घटनाओं का शिकार होते है वह परिवार वह माताये जिन्होने अपने नन्हे बच्चो को स्कूल भेजा पढने के लिए उन्हे क्या पता वहां मौत उनका इन्तजार कर रही है स्कलो की इमारतें इतनी कमजोर होती है कि जरा सी प्राकृति विपदा को सहन न कर सकी जबकि पहाडों मे तो बादल फटना कोई नयी बात नही ।
जीवन तो फिर भी आगे चलेगा पर उन परिवारों में कितनी दहशत होगी जिनके मासूम इसमे दफन हुए क्या वह इस सदमें से उबर पायगे ।बुधवार को बारिश थी ही बहुत भयानक सुबह जब बच्चो को स्कूल भेजने के उठाया तो चारों तरफ अंधेरा था इतना कालापन न जाने क्यो लग रहा था आज न जाने क्या होने वाला है ।प्रकृति के आगे आज भी मनुष्य बेबस है ,जीवनधारा चलते चलते ठहर जाती है ।
उत्तराखण्ड में बारिश अभी जारी ही है मेरी तीर्थ भूमि ऋषिकेश में जरूर आज बारिश से राहत मिली व बादलो के बीच से सूर्यदेव के दर्शन होते रहे। स्कूलो मे अवकाश घोषित होने से स्कल बन्द है पर दिल के किसी कोने में यह डर भी है अपने जिगर के टूकडों हम स्कूल तो भेज देते है पर क्या वह वहां पूरी तरह सुरक्षित है बस यही सब सोचते हुए जिन्दगी दूसरे कामों में उलझ जाती है क्यों यह जीवन है..................।
जिन्दगी के उतार चढाव में झांकने की एक कोशिश का नाम है जीवन धारा। बह रहे है इस धार में या मंझधार में कौन जाने?
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