जीवन चलता कभी न रुकता
रूकता तो मंझधार है
जीवन पानी सरिता का
बहना जिसके ध्येय है ,
अन्तहीन सफर ,कभी अन्धेरे
कभी गतिहीनता है, यह सफर
बडा अनोखा यहां हार जीत का सवाल है
चलते चलते सोचे जरा
यह कौन सा पडाव है
रूक जाये, जब समय भी
टिक- टिक क्या कहती घडी
अपने परायो के फेरों में उलझे रहते है हम।
जो दे जख्मों को उनसे खुशियों
की तमन्ना कैसे हो ।
जीवन फिर भी चलता
गम चाहे , खुशी हो
यह सफर तो कटना है
जीवन चलता कभी न रूकता
रूकता तो मझधार है..................
जिन्दगी के उतार चढाव में झांकने की एक कोशिश का नाम है जीवन धारा। बह रहे है इस धार में या मंझधार में कौन जाने?
Sunday, November 7, 2010
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