जिन्दगी के उतार चढाव में झांकने की एक कोशिश का नाम है जीवन धारा। बह रहे है इस धार में या मंझधार में कौन जाने?
Monday, October 24, 2011
Wednesday, October 12, 2011
करवाचौथ व्रत, संजीवनी वैवाहिक रिश्तें की
हमारे देश में कितने त्यौहार है गिनती नही की जा सकती शायद हर मौसम के हर रिश्तें के अलग अलग त्यौहार है सचमुच रिश्तों को भी त्यौहारों में लपेट कर संस्कारों से बांध हर रिश्तें को मजबूत बनाने का प्रयास किया गया है धार्मिक दृष्टि कोण को न देख कर यदि हिन्दुओ में वैवाहिक रिश्तें को अटूट बनाता हुआ आ रहा है करवाचौथ का त्यौहार। मीडिया की दखअंदाजी ने इसे नये आयाम दे दिये है ।
करवाचौथ का त्यौहार वास्तव में पति पत्नी के रिश्तें को संजीवनी प्रदान करता है जो रिशता जिम्मेदारियों के बोझ तले उन्हे खुद के बारे में सोचने का समय तो देता व देता उन पुरानी यादों को उम्र के साथ धुंधली पडती जाती है । सुहागने दिन भर निर्जल व्रत रख इस अपने सुहाग के लिए लम्बी उम्र की दुआए मागती है जिनका विवाह नही हुआ वह अपने लिए वर की कामना रखती है ।
यहां मेरा मकसद इस त्यौहार व व्रत का बखान करना या उसके धार्मिक व समाजिकता का वर्णन करना नही है क्योकि यह सभी जानते है व परम्पराओ का पालन भी करते है किन्तु जिस तरह विवाह संस्था में आज के समय में बदलाव आये है वहां इस तरह के धार्मिक आयोजनों महत्व और भी बढ जाता है व रिश्तों में पहले से अधिक प्रगाढता आ जाती है क्या अन्य संबधो जैसे लिवइनरिलेशन मे इस तरह के संस्कार संभव है जिसे आज की महानगरीय पीढी ने अपनाया । क्या हमारे ,धार्मिक संस्कार जो विवाह जैसी संस्था में संभव है आज पहले से भी अधिक प्रांसगिक नही ?
करवाचौथ का त्यौहार वास्तव में पति पत्नी के रिश्तें को संजीवनी प्रदान करता है जो रिशता जिम्मेदारियों के बोझ तले उन्हे खुद के बारे में सोचने का समय तो देता व देता उन पुरानी यादों को उम्र के साथ धुंधली पडती जाती है । सुहागने दिन भर निर्जल व्रत रख इस अपने सुहाग के लिए लम्बी उम्र की दुआए मागती है जिनका विवाह नही हुआ वह अपने लिए वर की कामना रखती है ।
यहां मेरा मकसद इस त्यौहार व व्रत का बखान करना या उसके धार्मिक व समाजिकता का वर्णन करना नही है क्योकि यह सभी जानते है व परम्पराओ का पालन भी करते है किन्तु जिस तरह विवाह संस्था में आज के समय में बदलाव आये है वहां इस तरह के धार्मिक आयोजनों महत्व और भी बढ जाता है व रिश्तों में पहले से अधिक प्रगाढता आ जाती है क्या अन्य संबधो जैसे लिवइनरिलेशन मे इस तरह के संस्कार संभव है जिसे आज की महानगरीय पीढी ने अपनाया । क्या हमारे ,धार्मिक संस्कार जो विवाह जैसी संस्था में संभव है आज पहले से भी अधिक प्रांसगिक नही ?
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