
जिन्दगी के उतार चढाव में झांकने की एक कोशिश का नाम है जीवन धारा। बह रहे है इस धार में या मंझधार में कौन जाने?
Thursday, March 10, 2011
वह सर्वशक्तिमान है......

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sahi kaha hai....
ReplyDeleteसुनीता जी,
ReplyDeleteआप वहां पहुँच गयी ,यहाँ हम सभी को पहुंचना है.
छोटी सी उम्र में इतनी परिपक्वता.
सलाम.
बस इस अध्यात्म पथ को जीवन में उतारना है.
फिर शांति ही शांति है,आनंद ही आनंद.
परमानंद.
शुभ कामनाएं..
अध्यात्मिक सुन्दर आलेख.
ReplyDeleteकिसी का एक शेर है सुनीता जी,देखिये:-
जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा क्यों मानें?
और जिसे देख लिया है वो ख़ुदा कैसे हो???,
Please accept my congratulations, very nice article, Welcome to my blog atulkushwaha-resources.Blogspot.com
ReplyDeleteAtul ..
किसी को उसकी सत्ता पर यकीन न हो तो पर वह अपनी उपस्थिति का अहसास किसी न किसी रूप मे करा ही देता फिर चाहे साइंस के कितने ही ही आविष्कार हो या मानव की कोई रचना उस शक्ति के बगैर कुछ नही हो सकते यह भी है कुछ लोग उसे प्रिय होते है माना या न मानो।
ReplyDeleteजापान में जो कुछ हो रहा है। क्या प्रकृति या ईशवर को हम नजर अन्दाज कर सकते है। मैने बचपन से लेकर अब तक मैने उसे हमेशा महसुस किया है यह बात अलग है हम माया से वशीभूत होते है उसे नही पहचान पाते।