Tuesday, March 5, 2013

अबोध कन्यायें व यौन अपराध

यौन अपराध :Jagran Junction Forum




छोटी मासूम बच्चियों के साथ होने वाले यौन अपराधों के पीछे आधुनिक महिलाओ को दोष देना औचित्यपूर्ण नही है ।जब किसी महिला के साथ इस तरह की घटना घटती है तो उन्हे ही दोषी ठहराया जाता है । 16 दिसंबर की दिल्ली गैंग रेप घटना को अभी भुला भी नही पाये की इस तरह की घटनाए अभी भी घट रही है फिर भी महिलाओ पर ही दोषारोपण ? कभी उनके पहनावे पर सवाल खडे होते है तो कभी उनके चाल चलन पर । जो लोग दोषी होते है उनके मानसिकता पर, उनके परिवेश पर सवाल क्यो खडे नही होते है अबोध कन्याओ से दुष्कर्म के पीछे कुत्सिक  मानसकिता वाले लोगो का हाथ होता है साथ ही यौन अपराधों के पीछे सुरक्षा तंत्र पुलिस  व प्रशासन का लापरवाह  रवैया जिससे सभी परिचित है । नैतिकता की उम्मीद करना बेकार है क्योकि जिस तरह समाज में विंसग्तियां दिनप्रतिदिन बढती ही जा रही है उसमें यौन संबध को लेकर पैदा हई उत्कंठा ,पानोग्राफी व नशे की लत शराबखोरी ने इन घटनाओ में बढोतरी की है। अबोध बच्चियां किस तरह खुद को बचा सकती है इसके लिए उनके माता-पिता को ही चौकन्ना होना होगा। किसी भी सभ्य समाज पर यह सवालिया निशान है किस तरह का समाजिक ढांचा मौजुदा समय में खडा होता जा रहा है जिस देश में नवरात्र पूजा का चलन हो नन्ही बच्चियों को देवी मान कंचक जमायी जाती है उस देश की संस्कृति का क्या जहां स्कूलो में मातापिता अपनी बच्चियों को शिक्षा लेने के लिए भेजते है वहां उनकी बच्चयों के साथ दुष्कर्म हो ? कितना पतन होगा अब ? मेरे घर में काम करने वाली एक महिला सिर्फ दिल्ली छोडकर एक छोटे शहर में सिर्फ इसलिए रहने आयी है क्योकि उसका यह मानना है कि दिल्ली में लडकियों को घर पर अकेले छोडना सुरक्षित नही है । दिल्ली में ही नही मासूम बच्चियों को अकेले छोडना कही भी सुरक्षित नही आज के माहौल को देखते हुए लोग  इस संबध में अपने सगे संबधियों पर भी विश्वास करने को तैयार नही । 
 उन लोगो की मानसिकता  पर तरस आता है जब छोटी बच्चियां यौनहिसा का शिकार हई  तो इस तरह के तर्क बेमानी है कि किसी महिला का पहनावा किस तरह किसी को यौन अपराध के लिए प्रेरित करता है पर यह अध्यन व शोध का विषय हो सकता  है यदि कोई  महिला छोटे वस्त्र पहनती है तो दुष्कर्म का शिकार होती है। यौन कुठा ,व मानसिक रोग से पीडित व घिनौनी मानसिकता के शिकार वयक्ति ही इन घटनाओ के पीछे जिम्मेदार होते है । निम्न स्तर का जीवन व्यतीत करने वाले शराबी , लावारिस ,मानसिक रूप से विक्षिप्त लोग जो इसी समाज में रहते  है इस तरह की हरकते  करते है पर फिर भी पहचाने नही जाते । मासूम बच्चियों कभी घर से उठा ले जाते है तो कभी कही सार्वजनिक जगहों पर भी हो सकते है सिर्फ बहस करने से  व सोचने से काम नही चलने वाला अपनी मासूम बच्चियों की सुरक्षा हमें ही करनी है पर दुख तो इस बात का है जब शिक्षा के मंदिर में भी हमारी अबोध बच्चियां सुरक्षित नही तो क्या पूरी स्त्री जाति की सुरक्षा पर सवालियां निशान खडे हो उठते है जिन के हल हमें ही ढूढनें है । समय आ गया है जब सरकार को भी इस मसले पर संजीदा होना पडेगा वरना  आने वाले समय में भारत देश को,देश  में रहने वाली स्त्रियों  विश्व में दुखी व विवश नारी जाति के रूप में जाना जायेगा न की एक सुरक्षित स्त्री जाति के रूप में, जब समाज में इस तरह की घटनाये घटनाये घटने के बजाय बढती ही जाये कारणों व हल को जज्बाती ढंग से ढूंढा जाये न की औपचारिक रूप में ......।     

Sunita Sharma  Khatri : कितनी ही कहानियां हमारे जीवन के चँहु ओर बिखरी रहती हैं कुछ भुला दी जाती है कुछ लिखी जाती हैं. हर दिन सवेरा होता है, ...

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