मम्मा, सारी, मै आपके लिए कुछ नही ला पायी मैने सोचा मै आपको आपको एक नैकलैस गिफट करू । पापा क्या आप मेरी मम्मा के लिए नेकलैस ला देगे? मै कैसे बाजार जाउ? मम्मा आज मैदर्स डे है, न पापा को बोलो न मेरे साथ चले !अपनी नन्ही सी गुडिया के मुंह ऎसी बाते सुन कर मै हैरान हो गयी मेरी आंखो मे आंसू आ गये इतना छोटा बच्चा इतनी फींलिग्स वो अभी सिर्फ यूकेजी में पढती है ।मैने उसको कहा की आज मैदर्स डे नही है पर उसने टीवी पर दिखाया देखो मम्मा !
टीवी देखते- देखते बच्चे काफी कुछ सीख जाते है जो हम उन्हे कभी नही बताते टीवी उन्हे बहुत कुछ सिखा रहा है । लडकिया अपने माता पिता के प्रति कुछ ज्यादा ही संवेदनशील होती है लडको में यह संवेदनशीलता कम होती है
वह अपनी दुनिया में ज्यादा मशगुल रहते है ।
बचपन मे एक कहानी पढी थी जिसमें हमीद नाम का बालक मेले में दूसरे बच्चों की तरह पैसे अपने लिए न खर्च कर अपनी मां के लिए एक चिमटा लाना पसन्द करता है क्योकि रोटी बनाते वक्त उसकी मां के हाथ जल जाते थे । कहते है पूत के पांव पालने में ही दिख जाते है ।
कभी -कभी बहुत दुख होता है जब यह खबर सुनने को मिलती है किसी के युवा पुत्र की मृत्यु आसयमिक हो जाती है या वह खुद ही मृत्यु को गले लगा लेता वह स्थिति उन माता पिता पर कितनी भारी गुजरती है इसकी कल्पना कर पाना भी दुखद है । सहनशीलता का हास जो आजकल देखने को मिलता है जीवन से घबरा जाते है कठिन परिस्थतियों को नही झेल पाते है । सवाल यह उठता है कि आज के समाजिक परिवेश मे बच्चों की परवरिश किस ढंग से की जाये की वह बडे होकर सहनशील बने दुसरों को सहारा देने के लायक बने न कि सिर्फ स्वार्थ में अपने ही हित के बारे में सोचे ।
टीवी देखते- देखते बच्चे काफी कुछ सीख जाते है जो हम उन्हे कभी नही बताते टीवी उन्हे बहुत कुछ सिखा रहा है । लडकिया अपने माता पिता के प्रति कुछ ज्यादा ही संवेदनशील होती है लडको में यह संवेदनशीलता कम होती है
वह अपनी दुनिया में ज्यादा मशगुल रहते है ।
बचपन मे एक कहानी पढी थी जिसमें हमीद नाम का बालक मेले में दूसरे बच्चों की तरह पैसे अपने लिए न खर्च कर अपनी मां के लिए एक चिमटा लाना पसन्द करता है क्योकि रोटी बनाते वक्त उसकी मां के हाथ जल जाते थे । कहते है पूत के पांव पालने में ही दिख जाते है ।
कभी -कभी बहुत दुख होता है जब यह खबर सुनने को मिलती है किसी के युवा पुत्र की मृत्यु आसयमिक हो जाती है या वह खुद ही मृत्यु को गले लगा लेता वह स्थिति उन माता पिता पर कितनी भारी गुजरती है इसकी कल्पना कर पाना भी दुखद है । सहनशीलता का हास जो आजकल देखने को मिलता है जीवन से घबरा जाते है कठिन परिस्थतियों को नही झेल पाते है । सवाल यह उठता है कि आज के समाजिक परिवेश मे बच्चों की परवरिश किस ढंग से की जाये की वह बडे होकर सहनशील बने दुसरों को सहारा देने के लायक बने न कि सिर्फ स्वार्थ में अपने ही हित के बारे में सोचे ।