Saturday, November 18, 2017

थप्पड


थप्पड
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'ऐ बाबु तनिक मदद करी दो , '
"काहे तोहार मर्द नही है का जो हमऊ ई काम करेब |"
"मर्दवा गया है अपनी छमिया के घरे "
हमऊ को यहां छोडे रही कहे हरे दीपावली पर आकर तोहे शहर ले जात रही पर उ कौ कौने ठिकाना नही झूठे बोलत रही
'जब ही देखो तबही हमें कहे रहे ई बार तोहे न छोडे इहां गांव में |'
झूठा है बेशर्म ...
तो तू काहे इन्तजार करे है तू भी कौन दूसर मर्द  काहे नाही  कर लेब ...ऐसन आदमी का का ठिकाना काहे अपनी जवानी बरर्बाद करत उ खातिर जौ तोहार रत्ती भर भी फ्रिक नाही करत है ...
चटाक...लल्लन के गाल पर रमिया ने जोरदार थप्पड जड दिया |
लल्लन गाल पर हाथ लगाये रमिया का तमतमाता सूर्ख गुलाबी चेहरा लाल होते देखता रहा |

'खबरदार जो दोबार ई बात  आपन मुंह से निकाली .'..

रमिया ने जैसे तैसे अपनी फलों की टोकरी खुद ही सर पर रखी और चल पडी अपनी ..डगर ई सोच के ....
अब कबही भी अपनी काम में कौनो पराये मर्द की मदद नाही मांगेगी चाहे उसे कितने भी दुख उठाने पडे |

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सुनीता शर्मा खत्री
Pic frm goggle


Monday, November 13, 2017

डायन

डायन
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जब से पडोस  में आयी .....एक एक कर सबकों निगले जा रही है डायन .....!!!!
उसकी चमकती आँखों में एक अजीब से प्यास दिखती थी बाल लम्बे ...डायन की शक्ति उसकी चुटिया में होती है किसी तरह इसकी चुटिया कट जाये तो यह किसी का कुछ नही बिगाड पायेगी |
"अरी सुनती हो....! बगल के मकान में बिरजू रहता था | अकेला था सुबह मरा पडा मिला , क्यों ?? कैसे बहन जी , हट्टा कट्टा था वो तो कैसे मर गया अभी तो बेचारे का ब्याह भी न हुआ था......काकी , यहां डायन जो आ गयी है!
अब देखते रहों कौन कौन मरता है !"

"मेरी मु्र्गियां थी बारह... बची दस दो कहां गयी...दिनकर
 बडबडा रहा था ...रामू तूने मेरी  मू्र्गी तो नही चुरायी मै क्यूं चुराऊंगा तेरी  मू्र्गी,
 ‎ जा कही ओर जा के देख पागल कही का |"

" ‎दिनकर भैया ...जल्दी आओ" .. जा मुझे परेशान न कर रामू मै तो पागल हूं  , अब काहे मुझे बुला रहा है  एक तो दो मुर्गी न जाने किसने चुरा ली मालिक मेरी पगार से पैसे काट लेगा और तो मुझे पागल कहता है नही भैया वो अाप मुझे समझ रहे थे  , मुर्गी चोर !
तो मैने कहा बाकि मुझे पता है आपकी  मुर्गी किसने चोरी किसने जल्दी बता भाई !
 ‎ऊ कुबडे की बीवी ने
 ‎जा कर......
 ‎ देखों पका कर खा रही है ...डायन है ससुरी !!!
 ‎उसकों तो हम छोडेगे नही ..
 ‎मुझ गरीब का पेट ही मिला काटने को |
" ‎जाने  दो भैया ...वो उल्टे आपको भी खा जायेगी पका कर हां हां हां  ....रामू हंसता हुआ भाग गया  |
 ‎##
सीता . ..क्या है  ‎
यहां बैठी इन लुगाईयों के साथ बात बना रही है देख कालू कहां गया...
 उ तो अपने दोस्तो के साथ तैलया पर नहाने के लिए गया है अभी तक नही आया क्या ??
 ‎नही तो ..घर पर कोई नही है अभी तक नही आया हाय राम दिन ढलने को है कालू ओ कालू ..सीता अनहोनी की आशंका से तलैया की ओर  दौड पडी पीछे हरिया भी भागा चला गया |
तलैया के किनारे भीड लगी थी बाल खोले डायन बच्चे के ऊपर झुकी हुई थी |
सीता और हरिया की चीख बढ गयी , हाय दैया डायन हमार बचवा के ऊपर चढे क्या कर रही है |
देखा कालू लेटा हुआ था और उसके मुंह से पानी निकाल रहा था कुबडे की लुगाई जिसे गांव वाले डायन मानते थे कालू का पेट दबा कर डूबने के कारण पेट में जाने वाले पानी को बाहर निकाल रही थी |
"छोड डायन हमार बचवा को "....सीता ने उसे जोर से थक्का दिया और हरिया के संग मिल कालू के पेट का पानी बाहर निकालने लगे थोडी देर में कालू समान्य स्थिति में आ गया मां मां करता हुआ सीता से लिपट गया ," हमार कालू क्या रे कालू क्यो गया नहाने अगर तोहे कछु  हो जाई तो हमार क्या होगा |"
कालू सुबकने लगा हरिया बोला कालू तू पानी में कैसे डूबा "हम तलैया में गहराई में चले गये थे बापू बहुत गहरा था हम डूबने लगे थे बस हाथ ही बाहर थे किसी ने पकड कर खीच लिया और हमका बचा लिया "
" कौन के "ऊ डायन ने ...
कालू ने इशारा किया कुबडे की लुगाई की तरफ जो घुटनों में सर छिपाये बैठी थी |
अब तक कुबडा भी वहां आ गया था |
"खबरदार जो मेरी लुगाई को डायन कहा |"
सीता ने अपने आंसू पोछे बच्चे को सलामत देख वो खुश थी फिर हरिया का इशारा पा डायन के करीब जा उसे उठा कर बोली ,"ई डायन नाही हो सकत ई तो हमार तरह इंसान है  | गांव में जो कौन तुम्हे डायन कहे रहे उ का हम देख लेई" |
कुबडा खुश हो गया |
"भाभी बहुत धन्यवाद तोरा सब ईको डायन समझे रहे , ई तो खुद ही बेजुबान है बेचार गूंगी है | इस कर , कोई कुछ भी बोलता है  तो बस टुकर टुकर ताकत है अपनी बडी बडी आँखों से बाकी हम जानते है हम जैसे कुबडे गरीब को अपनी लडकी ब्याह  खातिर दे रहे | हमार बहुत सेवा करे है |
कुबडे की बात सुन डायन उठ खडी हुई और उसका हाथ थाम वहां से चल पडी उसकी आंखे सूनी रही |
भीड चुप थी सीता  और हरिया की आँखे अभी भी नम थी |
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सुनीता शर्मा खत्री

Monday, October 23, 2017

तुम्हारे लिए

तुम्हारे लिए

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'गुडिया की मम्मी, जल्दी आओ... सारी की सारी चली  गयी एक तुम्ही हो जो हमेशा देर करती हो '...जाने दो उनके पास मेरे जितना काम नही है |
बैठी रहो यही , मै तो चली !
सजधज के मोहल्ले की औरते करवाचौथ की पूजा , कथा के लिए मुखियाइन के घर जाती है | पतियों की आमदनी इतनी नही है पर न जाने करवाचौथ के लिए नये गहने कपडे कहां से ले आती है | गुडिया की माँ तैयार होते होते सोच रही थी कितने साल यूं ही बीत गये इस बरस भी एक साडी नही ले पायी अपने लिए , सारी आयेगी , बन ठन के उसके जी को जलायेगी |
क्या पहनु , कुछ समझ नही आ रहा ...घर का काम करते करते  पूरा दिन निकल गया , चूडी ,बिंदी, कंगन सब है पर साडी पुरानी  | सब की जरूरते पूरी करते करते अपने लिए कटौती करना उसकी आदत थी |
मै चुप था गुडिया माँ ,  मेरी पत्नी उसे मै देख रहा था , गुडिया हँस रही थी , तभी आवाज आयी , गुडिया मम्मी है... हां जरा बुला दो तो | माँ आँटी आयी है , कौन ..आकर देखो न ! जी कहिए मैने पहचाना नही यह लीजिए , आपके कपडे सब तैयार कर दिया है | मेरे कपडे पर मैने कब ?? लिए ??.. यह भाई साहब दे गये थे , ब्लाऊज ,साडी सब तैयार कर दी है मैने , मेरा बिल दे दो मुझे देर हो रही है |
नेहा मेरी ओर देख रही थी ..'हां , मैने ही दिए थे  | यह लीजिए....
' आप ले आयी मै अभी लेने आने ही वाला था |'
...
लो...इसे पहन लो तुम्हे पूजा के लिए जाना है ... नेहा ज्यादा तो नही..' बस यही कर पाया मै करवाचौथ पर  तुम्हारे लिए |


सुनीता शर्मा खत्री
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Tuesday, September 12, 2017

खुशी

खुशी

*******(लघुकथा)  
"तुम मेरे लिए खाना भी नही बना सकती मै रात दिन तुम्हारे
लिए खटता हूं."..  आफिस से घर लौट कर आया राकेश  गुस्से से आग बबूला हो रहा था रात के दस बजे थे अभी तक डिनर नही बना था निशा अपना दर्द छिपा चुपचाप पति के ताने सुनती रही ," वहाँ क्यों खडी हो  बताओ मुझे दिन भर क्या करती रहती हो मोबाइल चलाने से फुर्सुत मिले ...यह हाथ क्यो छिपा रखा है |"
राकेश ने निशा की ओर देखा उसकी आँखों में आँसू थे | राकेश थोडा नरम पड चुका था क्या हुआ अब यह क्या नौटंकी है !! "अरे दिखाओं हाथ क्यों छिपा रखा है " | निशा ऐसे ही खडी रही राकेश ने उसका हाथ पकडा दुपट्टे से बावहर निकाला पूरा हाथ जला हुआ था जिसे छिपाने की कोशिश वो कर रही थी |" यह क्या हुआ? हाथ कैसे जला लिया और चुप क्यो थी बताया क्यों नही ? " "आपने बोलने दिया आते ही शुरू हो गये | " "सॉरी ..ये कब हुआ जब मै खाना बनाने के लिए गयी तो जल्दबाजी में कडाही मेरे  हाथ से छुट गयी और गर्म तेल गिर गया इसलिए डिनर नही बना पायी |"
राकेश ने बरनोल लगाया निशा के हाथ पर अब तुम बाकी के काम कैसे करोगी, तुम्हे ध्यान रखना चाहिए था ," मैने कहा न गल्ती से हो गया ठीक हो जायेगा "|
राकेश ने माँ को फोन मिलाया और उनसे शहर आने की विनती की  , माँ ने वह कल आ जायेगी जो गाँव में रहती थी |
माँ के आने से घर में रौनक हो गयी उन्होने सारा काम संभाल लिया | दिन जो निशा फोन पर समय बिताती थी सास के आने  से उसका अकेलापन भी मिट गया उसको बातें करने के लिए माँ मिल गयी थी |
राकेश उन दोनो को देखता तो उसका चिढचिढापन भी कम हो गया उसकी चिन्ता खत्म हो गयी थी वरना वह हमेशा ऑफिस में सोचता रहता निशा अकेले क्या कर रही होगी अब  वह अपने काम पर भी ध्यान दे पा रहा था उसको यह एहसास भी हो चला था कि दूसरे लोगो की बातों में आकर उसने नाहक ही दोनो को अलग रखा और खुद को व निशा को माँ की ममता से अलग रखा...वह ठान चुका था कि भले ही निशा का हाथ ठीक भी हो जाये वह माँ को अब गांव वापस नही जावे देगा | राकेश का चेहरा खुशी से दमक रहा था |

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सुनीता शर्मा खत्री
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Monday, September 11, 2017

नौकरी

नौकरी
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"माँ...मुझे नौकरी मिल गयी अब तुम्हे काम करने की कोई जरूत नही  " , वन्दना हाथ में ज्वाइनिग लेटर लिए लगभग भागते हुए रसोई में दाखिल हुई अभी अॉफिस से लौट कर आयी दीपशिखा रसोई में कॉफी बनाने के लिए गयी थी
बेटी खुशी के मारे  फूली न समा रही थी हो भी क्यों न हो पिता विहीन वन्दना के लिए सबसे जरूरत  ऩौकरी की ताकि ताकि अपनी माँ  सहारा दे सके , माँ जिसने उसे काबिल बनाने के लिए कोई कसर न छोडी थी .बचपन में पिता का साया उसके सर से उठ गया |
दीपशिखा ने घर के साथ -साथ बाहर के कामों की जिम्मेदारी का निर्वाह बखुबी किया उसे न ससुराल का सहयोग मिला न मायके का मिला तो बस तिरिस्कार सास- ससुर ने बेटे की मौत का दोषी बता मनहूस होने का ताना दे मायके जाने पर विवश कर दिया वो लोग ...
भी कब तक उसका व उसकी बेटी का बोझ उठाते न ही उनकी माली हालत बहुत अच्छी थी  | पढी लिखी होने के कारण पिता ने भागदौड कर लोगो के पांव पकड  सरकारी दफ्तर में क्लर्क बनवा दिया जिसके अवज में अपनी तनख्वाह उसे घर पर ही देनी पडती |
हद तो तब हुई जब बडी होने पर वन्दना को स्कूल भेजने के
नाम पर घर वालों ने बहाने बनाने शुरू कर दिये इस बात पर विधवा माँ का दिल भर आया उसने उसी वक्त उस ने उस घर को छोडने का फैसला कर लिया |
किराये के घर में रह कर उसने वन्दना को ऊँची तालीम दिलायी बेटी ने हर कदम पर माँ का सहयोग किया स्कूल में वह सभी को प्रिय थी सभी उसकी तारीफ करते वन्दना अपनी बेटी के साथ बहुत खुश थी  |
"तुम्हारी ज्वाइनिंग कब है बेटा ", ' कल शाम की ट्रेन है मैने पूरी तैयारी कर ली है तुम चिन्ता मत करो मै वहाँ पहुँच तुम्हे बता दूँगी बस अब आप तो अपनी जॉब छोड ही दो क्योकि कुछ दिन बाद आप भी मेरे पास आ जाना ' |  "पहले तुम अपनी शुरूवात तो करों मेरे बारे में बाद में सोचना ,खाली बैठ कर भी मै क्या कँरूगी" ..."हू आप नही मानोगी " ...नही  ! फिर दोनो ही खिलखिला पडे |

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लेखिका
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सुनीता शर्मा खत्री

Friday, August 25, 2017

छोटा काम


छोटा काम
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"  मै किसी जरूरी  काम से जा रहा हूं तुम यहाँ अकेले रहोगी कहो तो तुम्हे घर छोड दूं वापसी में साथ लेता आऊगा", 'ठीक है छोड दो लेकिन समय से वापस आ जाना.'
रीया और अभिषेक ने परिवार वालो की सहमति से रीया के साथ प्रेमविवाह किया था अभिषेक काफी समझदार व सुलझा हुआ इन्सान था वही रीया घमंडी व एकाकी पर मासूम थी, दोनो की उम्र में भी फासला था.
रीया रात भर इन्तजार करती रही कब वो वापस आयेगा और भुखे ही सो गयी उसके घर वाले समझाते रहे की किसी काम में फंस गया होगा इसलिए नही वापस आया होगा पर वो नही मानी उसके दिमाग में बस एक ही बात थी उसे मायके में छोड खुद अपने दोस्तों के साथ घुम रहा होगा रीया ने ठान लिया की जब वो आयेगा तो उससे बात नही करेगी .अगले दिन जब अभिषेक वापस आया तो रीया के अलावा सब प्रसन्न थे ....."क्या हुआ किसी ने कुछ कहा क्या तुम क्यो उदास हो मुझे तुमसे कोई बात नही करनी ,क्यो? तुम तो शाम को वापस आने वाले थे न ?नही आ पाया अब तो आ गया न देखो मै तुम्हारे सिए क़्या लाया हूं नही चाहिए मुझे जाकर अपने चहेतों को दे देना"... रीया के तेवर देख ससुराल में अपने को अपमानित समझ अभिषेक तुंरत लौट गया .."क्या हुआ रीया अभि कहाँ  गया तुन्हारा झगडा हुआ"   माँ बहुत गुुस्से में थी उन्हे अपनी लाडली के तेवरों का पता था  " रीया.. अभी तुम्हारी शादी को दिन ही कितने हुए तुम दोनो कितना झगडा करते हो वो भी हमारे सामने ,पीठ पीछे तो न जाने क्या करते होगे अभी वो अाया औऱ तुम्हे लिए बगैर ही चला गया." "माँ तुम चिऩ्ता मत करों करो मै खुद ही वापस चली जाऊगी मुझे कोई शौक नही है यहाँ आने तुम्हारा सर चढाया  है अभि को वो ही मुझे यहाँ छोड के जाता है",  "मेरा वो मतलब नही था ..बेटा हम तो बस यह चाहते तुम दोनो प्यार से रहो झगड कर नही " '.मै जा रही हूँ ..'....
रीया झटपट अपना बैग उठा कर निकल गयी..."अरे सुनो तो रीया रूको " माँ पीछे पीछे दौडी पर रीया तो जा चुकी थी  "यह लडकी भी न."...उफ!!
घर पँहुची रीया को दरवाजे पर ताला मिला चाबी पडोस से ली उसे पता था अभिषेक चाबी पडोस में दे जाता है ..पडोसन ने बताया कि वो बोल गया है कि तुम्हें बता दूं वो शाम को आयेगा ठीक है  उसने बदले में यही कहा .
..."भाभी भैया है ....? नही तो अच्छा यह उनका समान दे देना," "तम्हारे पास अभि का समान परसों तुम भी अभि के साथ थे .नही...हाँ पर भैया मेरी गाडी ले गये थे एक सवारी को अचानक दिल्ली जाना था मुझे कुछ काम था तो अभिषेक भैया गये थे..".
 .क्या ..??
मुझे कुछ नही बताना होता है , कुछ देर बाद अभि भी आ गया बोला गुस्सा उतर गया ...रीया सुबकने लगी क्या हुआ तुम क्यो रो रही हो मेरा आना अच्छा नही लगा ..यह क्या रीया उसके सीने से जा लगी  ",तुमने बताया क्यो नही तुम इतनी दूर गये थे पर क्यो ??"
"तुम्हे पता है रीया मेरे पास कोई काम नही है घर का खर्च  और तुम्हारी कपडे जो तुमने मॉल में पसन्द किये थे वो  भी लाने थे.काम कोई छोटा बडा नही होता सवारी को छोड दिया बस और जब मुझे जॉब मिल जायेगी तब मै नही करूंगा. "रीया खिलखिलाकर हँस पडी.

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सुनीता शर्मा खत्री

(Copyrights)

Thursday, August 24, 2017

मामा ..


मामा
****(*कहानी*)
लाली.. यह गठरी जरा अपने सर पर ऱख लो अब मुझसे और इसका बोझ न उठाया जायेगा...नानी को जल्दी थी गठरी में बंधी रूई से नयी रजाई बनवाने की ताकि उनकी लाडली नवासी को ठंड न लगे सर्दियों में सो मुझे साथ ले चल पडी इतनी  बडी गठरी को लेकर दुकान पर देने .मैने अपने नन्हे हाथों से गठरी अपने सर  पर रखी ताकि कुछ देर के लिए नानी अपनी कमर सीधी कर सके पर नन्ही बच्ची कैसे इतना बडा गट्ठर उठा पाती...लगभग मै चिल्ला ही पडी नानी...! तुम्हे क्या जरूरत थी इसे लेकर आने की , नाना जी किसी  हाथों  भिजवा ही देते न ..मुझे नानी पर बहुत गुस्सा आ रहा था  . अच्छा चल थोडी देर सुस्ता लेते है
 नानी मुझे गुस्सा होते देखा तो एक किनारे के घर की दयोढि पर शरण ली तो मै भी उनके साथ बैठ गयी और कितनी देर लगेगी नानी ...बस थोडी दूर और जाना है  .मुझे पता था नानी को मेरी कितनी फिक्र थी .
 नानी देखो मामा जी आ रहे है .कौन बिशन ?...वो उनके पडोस ने ही रहते थे हां ...उनसे बोल दो वो यह गठरी रजाई वाले की दुकान पर छोड देगे...अरे माता जी यहाँ काहे बैठी हो भगत जी आपको ढूंढ रहे है..भगत जी मेरे नाना जी को बोलते थे जो विष्णु भगवान के परम भक्त थे  ...मामा जी हमारी गठरी दुकान पर छोड दोगे क्यो नही बिटियां
 फिर मामा जी नानी को घर भेज दिया ..और अपनी साइकिल पर मुझे आगे बिठाया और रूई की गठरी साईकिल के   कैरियर पर  बांध लिया  . जो काम नानी और मेरे लिए तोडने के समान था उसे मामा ने चुटकी बजाते ही कर दिया...
 रात में  नानी के पास जा कर पूछा ...नानी हमारे मामा नही है?? है .. तो तुम्हारा मामा  बिशन, दीपू और न जाने उन्होने कितने नाम गिना दिये जिनमें से कुछ को मै जानती थी कुछ को नही.पर मुझे पता यह सब पडोस और रिश्तेदारी के थे..
 काश मेरे भी मामा होते...!!!!
 सुबह नाना जी मेरे पास अाये और बोले बैठक में आओ देखो हम तुम्हारे लिए क्या लाये है ..क्या जाओ देखों मै भाग कर गयी देखा बैठक में एक सुंदर शनील की रजाई रखी थी मसहरी पर .. वाह !! कितनी सुंदर है कितनी मुलायम..है और कितनी गर्म है .
 वापस नानी के कमरे में गयी तो नाना नानी से कह रहे थे कल एक जजमान ने दी  , उन्ही के यहां सत्यनारायण भगवान की कथा करने गया था.मुझे पूरा पक्का विश्वास हो गया ,  कमल, शंख ,चक्र और गदा धारी  जिनका चित्र पूजा घर नें है वो ही मेेरेे मामा है जिन्होनें  मुझेे और नानी को यह उपहार दिया.

Saturday, August 19, 2017

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों


अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
***********************shortstory


दो विरोधी गुटो के नेता आपस में बहस कर रहे थे नये सत्ताारूढ दल के नेता ने भूतपूव सरकार के नेताओ को देश की मौजूदा सि्थति का जिम्मेदार बता रहे थे कि इतने सालो तक देश पर राज किया पर देश वही का वही है उन्होने सिर्फ देश को खोखला किया और नेताओ ने लूटा जनता को बस.अब देखना हम इस को  कैसे सोने की चिडिया बनायेगे .
 भूतपूव सत्तारूढ दल का एक बुजुग नेता बहुत देर से सारी बाते सुनता रहा..बाद में  उठ कर खडा हुआ और नम आँखो से बस  इतना ही बोला...."कर चले हम फिदा जानो तन साथियो अब तु्म्हारे हवाले वतन साथियो ...".!!!!

Wednesday, August 9, 2017

सादगी

सादगी
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पता नही ....क्या होता जा रहा है विभा को हर वक्त आइना के आगे खड़ी रहती है...जब सही समय था तो सबको सादगी से रहने का भाषण देती अब खुद को किसी मॉडल से कम नही समझती अब जब चालीस बंसत पार कर चुकी अपने बेढब हुए पेट को चुस्त जींस पर लटकते हुए टॉप से ढक कर आधुनिक परिधान पहन कर जाने किसे रिझाने की असफल कोशिशों को, कामयाब करना चाहती है..यह.. उसको देखती हूँ तो  या तो हंसी अाती है फिर अफ़सोस होता है.
यह कैसे कपडे पहने है विभा तुमने ? कयूं  क्या खराबी है इनमें ठीक तो मै कितनी अच्छी लगती हूँ..जींस टाप ही तो है जो तुम मुझे घूर रही हो तुम भी तो पहनती हो न ???
उसमे कोई खराबी नही पर कुछ तो उम्र का ख्याल करो तो, इतना भी क्या पर वो कब सुनने वाली थी.
यह वही विभा  है जो शादी से पहले सादगी की मूर्ति बन औरों को भी सादगी से रहने का भाषण दिया करती थी...कहती थी अगर हम साधारण वेशभूषा धारण करते है तो कही भी आ जा सकते फैशन में रहकर सबकी नजरे हम पर ही टिकी रहती है  और काम करने से लेकर कही अाने जाने में लोगो की निगाहों में हमी होते हैं . इतने सालों बाद न जाने विभा की जिंदगी किस दौर से गुजरी की वह बदल गयी यह वो नही थी जिसे मै जानती थी.
जब उसने आप बीती सुनाई तो मै दंग रह गयी.. विभा का विवाह एक एेसा इंसान के साथ हुआ जो आधुनिक ख्यालों का था उसे फैशनेबल कपड़ों का चाव था वह खुद भी अप टू डेट बना फिरता था ..उसे विभा की सादगी जरा भी पंसद न अायी वह अाये दिन उसे नीचा दिखाता ..और गंवार जाहिल के तानों से उसके दिल को छेद डालता.
विभा ने उसे खुश करने की हर संभव कोशिश की पर उसके दामन में कोई खुशी न आयी.
विभा ने खुद को पूरी तरह बदल लिया हेयर स्टाइल से लेकर हर वो अाधुनिक परिधान उसके पास था जिन्हें देख वह नाक भौं बनाया करती थी. फिर भी वो तन्हा थी उसका हमराज उसके साथ कहाँ था ....क्या दिया सादगी ने विभा को.    
                             #######

सुनीता
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Tuesday, July 4, 2017

खंडहर ....

खंडहर......
मैं उसकी बाते सुन सुन कर थक चुका था रोज की वही किट किट... हे भगवान  अब तुम ही  मेरी कुछ मदद करो
सारी गलती तो मेरी ही है  मै ही उसके मासूम चेहरे के पीछे छिपे फरेब को न देख न पाया  .  पैसे की चकाचौंध ने मानो परदा डाल दिया हो. कितना मना किया सबने यह लड़की तुम्हारे  लिए सही नही, यह मतलबपरस्त व एक नम्बर की स्वार्थी है पर दिलो दिमाग़ पर वह हावी हो चुकी थी.. उसके रूपजाल  में मै इस कदर उलझ गया की अच्छे बुरे का कुछ होश न रहा.
बस उसके इशारों पर चलना मजबूरी नही आदत बन गयी
मेरा वक्त उसके साथ ही बीतता था वो खुद की तुलना एक हसीन इमारत से करती थी अगर गलती से मै कोई बात माँ की मान लेता तो वह कहती तुम उस खँडहर की ही सुनोगे मेरी नही. मै उसे कभी दुखी नही देख सकता था भले ही कितनो के दिल जार जार रोते हो सिर्फ उस हसीन इमारत की वजह  से. अपनी हर बात वो ऊपर रखती चाहे किसी का कितना भी नुकसान क्यों न हो उसे फर्क नही पडता.
एक बार मै बुखार में तड़प रहा था वो शहर  से दूर अपने किसी करीब की शादी में शामिल होने गयी थी मै घर पर अकेले था मां पहले ही मुझे छोड़ गांव में चली गयी थी.....
मेरी खांसी रुकने का नाम न लेती थी लगता मानो जान ही जायेगी पर उसे मेरी कोई परवाह न थी. वह जान कर भी अंजान बनी रही.
......यह क्या मै यहां कैसे माँ..  मुझे कौन लाया.. तुम आराम करो बेटा , डॉक्टर ने चकअप कर लिया है , तुम  ठीक हो जाएगा डरो नही मै हूँ न... मेरी आँखों में आंसू  थे. माँ मुझे मानो दोबारा जीवन दिया हो. ...वो हसीन इमारत अपनी जली कटी सुनाने गांव चली अायी वो बार - बार अपनी अमीरी का रोब दिखाती माँ ने एक शब्द न कहा पहली बार मुझे अपने अाप से नफरत हो रही थी...
उसकी अाँखो में विस्मय और अपमान... झलक रहा था.  मुझे खंडहर के अांचल में सूकून मिल रहा था...उस हसीन इमारत की घुटन से आजाद.... कोसो दूर खंडहर में जीवन जी रहा था.
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Sunita Sharma  Khatri : कितनी ही कहानियां हमारे जीवन के चँहु ओर बिखरी रहती हैं कुछ भुला दी जाती है कुछ लिखी जाती हैं. हर दिन सवेरा होता है, ...

life's stories