Tuesday, September 12, 2017

खुशी

खुशी

*******(लघुकथा)  
"तुम मेरे लिए खाना भी नही बना सकती मै रात दिन तुम्हारे
लिए खटता हूं."..  आफिस से घर लौट कर आया राकेश  गुस्से से आग बबूला हो रहा था रात के दस बजे थे अभी तक डिनर नही बना था निशा अपना दर्द छिपा चुपचाप पति के ताने सुनती रही ," वहाँ क्यों खडी हो  बताओ मुझे दिन भर क्या करती रहती हो मोबाइल चलाने से फुर्सुत मिले ...यह हाथ क्यो छिपा रखा है |"
राकेश ने निशा की ओर देखा उसकी आँखों में आँसू थे | राकेश थोडा नरम पड चुका था क्या हुआ अब यह क्या नौटंकी है !! "अरे दिखाओं हाथ क्यों छिपा रखा है " | निशा ऐसे ही खडी रही राकेश ने उसका हाथ पकडा दुपट्टे से बावहर निकाला पूरा हाथ जला हुआ था जिसे छिपाने की कोशिश वो कर रही थी |" यह क्या हुआ? हाथ कैसे जला लिया और चुप क्यो थी बताया क्यों नही ? " "आपने बोलने दिया आते ही शुरू हो गये | " "सॉरी ..ये कब हुआ जब मै खाना बनाने के लिए गयी तो जल्दबाजी में कडाही मेरे  हाथ से छुट गयी और गर्म तेल गिर गया इसलिए डिनर नही बना पायी |"
राकेश ने बरनोल लगाया निशा के हाथ पर अब तुम बाकी के काम कैसे करोगी, तुम्हे ध्यान रखना चाहिए था ," मैने कहा न गल्ती से हो गया ठीक हो जायेगा "|
राकेश ने माँ को फोन मिलाया और उनसे शहर आने की विनती की  , माँ ने वह कल आ जायेगी जो गाँव में रहती थी |
माँ के आने से घर में रौनक हो गयी उन्होने सारा काम संभाल लिया | दिन जो निशा फोन पर समय बिताती थी सास के आने  से उसका अकेलापन भी मिट गया उसको बातें करने के लिए माँ मिल गयी थी |
राकेश उन दोनो को देखता तो उसका चिढचिढापन भी कम हो गया उसकी चिन्ता खत्म हो गयी थी वरना वह हमेशा ऑफिस में सोचता रहता निशा अकेले क्या कर रही होगी अब  वह अपने काम पर भी ध्यान दे पा रहा था उसको यह एहसास भी हो चला था कि दूसरे लोगो की बातों में आकर उसने नाहक ही दोनो को अलग रखा और खुद को व निशा को माँ की ममता से अलग रखा...वह ठान चुका था कि भले ही निशा का हाथ ठीक भी हो जाये वह माँ को अब गांव वापस नही जावे देगा | राकेश का चेहरा खुशी से दमक रहा था |

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सुनीता शर्मा खत्री
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