Monday, September 11, 2017

नौकरी

नौकरी
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"माँ...मुझे नौकरी मिल गयी अब तुम्हे काम करने की कोई जरूत नही  " , वन्दना हाथ में ज्वाइनिग लेटर लिए लगभग भागते हुए रसोई में दाखिल हुई अभी अॉफिस से लौट कर आयी दीपशिखा रसोई में कॉफी बनाने के लिए गयी थी
बेटी खुशी के मारे  फूली न समा रही थी हो भी क्यों न हो पिता विहीन वन्दना के लिए सबसे जरूरत  ऩौकरी की ताकि ताकि अपनी माँ  सहारा दे सके , माँ जिसने उसे काबिल बनाने के लिए कोई कसर न छोडी थी .बचपन में पिता का साया उसके सर से उठ गया |
दीपशिखा ने घर के साथ -साथ बाहर के कामों की जिम्मेदारी का निर्वाह बखुबी किया उसे न ससुराल का सहयोग मिला न मायके का मिला तो बस तिरिस्कार सास- ससुर ने बेटे की मौत का दोषी बता मनहूस होने का ताना दे मायके जाने पर विवश कर दिया वो लोग ...
भी कब तक उसका व उसकी बेटी का बोझ उठाते न ही उनकी माली हालत बहुत अच्छी थी  | पढी लिखी होने के कारण पिता ने भागदौड कर लोगो के पांव पकड  सरकारी दफ्तर में क्लर्क बनवा दिया जिसके अवज में अपनी तनख्वाह उसे घर पर ही देनी पडती |
हद तो तब हुई जब बडी होने पर वन्दना को स्कूल भेजने के
नाम पर घर वालों ने बहाने बनाने शुरू कर दिये इस बात पर विधवा माँ का दिल भर आया उसने उसी वक्त उस ने उस घर को छोडने का फैसला कर लिया |
किराये के घर में रह कर उसने वन्दना को ऊँची तालीम दिलायी बेटी ने हर कदम पर माँ का सहयोग किया स्कूल में वह सभी को प्रिय थी सभी उसकी तारीफ करते वन्दना अपनी बेटी के साथ बहुत खुश थी  |
"तुम्हारी ज्वाइनिंग कब है बेटा ", ' कल शाम की ट्रेन है मैने पूरी तैयारी कर ली है तुम चिन्ता मत करो मै वहाँ पहुँच तुम्हे बता दूँगी बस अब आप तो अपनी जॉब छोड ही दो क्योकि कुछ दिन बाद आप भी मेरे पास आ जाना ' |  "पहले तुम अपनी शुरूवात तो करों मेरे बारे में बाद में सोचना ,खाली बैठ कर भी मै क्या कँरूगी" ..."हू आप नही मानोगी " ...नही  ! फिर दोनो ही खिलखिला पडे |

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लेखिका
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सुनीता शर्मा खत्री

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