Friday, August 20, 2010

प्रकृति से हारी जिन्दगी ........

बुधवार को बागेशवर के कपकोट के सुमगढ में सरस्वती शिशु मंदिर में बादल फटने के कारण स्कूल के मलबे मे 18 मासूमों की जाने चली गयी टी.वी चैनलों में आ रही खबरे, दिल दहलता है इस तरह की खबरों से जब प्रकुति का कहर बरपता है तो कुछ नही बचता ।जिन्दगी उन लोगो की क्या होती है? जो इस तरह की घटनाओं का शिकार होते है वह परिवार वह माताये जिन्होने अपने नन्हे बच्चो को स्कूल भेजा पढने के लिए उन्हे क्या पता वहां मौत उनका इन्तजार कर रही है स्कलो की इमारतें इतनी कमजोर होती है कि जरा सी प्राकृति विपदा को सहन न कर सकी जबकि पहाडों मे तो बादल फटना कोई नयी बात नही ।
जीवन तो फिर भी आगे चलेगा पर उन परिवारों में कितनी दहशत होगी जिनके मासूम इसमे दफन हुए क्या वह इस सदमें से उबर पायगे ।बुधवार को बारिश थी ही बहुत भयानक सुबह जब बच्चो को स्कूल भेजने के उठाया तो चारों तरफ अंधेरा था इतना कालापन न जाने क्यो लग रहा था आज न जाने क्या होने वाला है ।प्रकृति के आगे आज भी मनुष्य बेबस है ,जीवनधारा चलते चलते ठहर जाती है ।
उत्तराखण्ड में बारिश अभी जारी ही है मेरी तीर्थ भूमि ऋषिकेश में जरूर आज बारिश से राहत मिली व बादलो के बीच से सूर्यदेव के दर्शन होते रहे। स्कूलो मे अवकाश घोषित होने से स्कल बन्द है पर दिल के किसी कोने में यह डर भी है अपने जिगर के टूकडों हम स्कूल तो भेज देते है पर क्या वह वहां पूरी तरह सुरक्षित है बस यही सब सोचते हुए जिन्दगी दूसरे कामों में उलझ जाती है क्यों यह जीवन है.............
.....।

14 comments:

  1. sahi kaha aapne
    yah ghatna maine bhi jab TV par dekhi thi to bahut dukh hua tha.
    prakrati ke aage ham sab bebas hain.
    -
    -
    jeevan yun hi chalta rahega

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. सुनीता जी,
    आपने अच्छा मुद्दा उठाया है। इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। पहाड़ों पर हुई इस घटना के पीछे खनन किया जाना सबसे बड़ा कारण है। विचारपरक लेख केलिए बधाई।

    मेरे ब्लाग पर भी आप आमंत्रित हैं-
    http://www.ashokvichar.blogspot.com/

    ReplyDelete
  4. इस नए और सुंदर से हिंदी चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete
  5. ब्‍लागजगत पर आपका स्‍वागत है ।

    किसी भी तरह की तकनीकिक जानकारी के लिये अंतरजाल ब्‍लाग के स्‍वामी अंकुर जी,
    हिन्‍दी टेक ब्‍लाग के मालिक नवीन जी और ई गुरू राजीव जी से संपर्क करें ।

    ब्‍लाग जगत पर संस्‍कृत की कक्ष्‍या चल रही है ।

    आप भी सादर आमंत्रित हैं,
    http://sanskrit-jeevan.blogspot.com/ पर आकर हमारा मार्गदर्शन करें व अपने
    सुझाव दें, और अगर हमारा प्रयास पसंद आये तो हमारे फालोअर बनकर संस्‍कृत के
    प्रसार में अपना योगदान दें ।
    यदि आप संस्‍कृत में लिख सकते हैं तो आपको इस ब्‍लाग पर लेखन के लिये आमन्त्रित किया जा रहा है ।

    हमें ईमेल से संपर्क करें (pandey.aaanand@gmail.com पर अपना नाम व पूरा परिचय)

    धन्‍यवाद

    ReplyDelete
  6. सुनीता जी, कुछ प्राकृतिक आपदाएं ऐसी हैं कि जिन पर मानव चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता। जब यह समाचार मैंने टी.वी.पर देखा तो उन मासूम बच्चों की मौत पर मेरा दिल भी हाहाकार कर उठा था। पहाड़ों पर बादल फटने की घटनाएं अक्सर सुनने में आती हैं और उन घटनाओं का शिकार हुए लोगों पर मन में पीड़ा भी बहुत होती है, पर हम विवश से खुद को पाते हैं- सिवाय शोक प्रकट करने और श्रद्धांजलि देने के हमारे पास कुछ नहीं रहता।

    ReplyDelete
  7. हम और आप अपनी संवेदनाएं ही प्रकट कर सकते हैं प्राकृतिक आपदाओं के आगे किसी का बस नहीं चलता.

    ReplyDelete
  8. आपके ब्‍लाग का रंग बदल दिया जाना चाहिए, पढ़ने में आंखों को अतिरिक्‍त तनाव होता है।
    http://chokhat.blogspot.com

    ReplyDelete
  9. prakritik aapda ke aage koi jor nahin chalta.

    ReplyDelete
  10. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  11. सुनीता जी, सबसे पहले सामयिक चर्चा के लिए धन्यवाद। प्राकृतिक विपदा से लड़ना तो अब मानो हमारा शगल हो गया है। आपके यहाँ बादल फट रहे हैं, तो हमारे झारखण्ड मे बादल केवल दर्शन दे रहे हैं,बरसना शायद भूल गये हैं। यह कई जिलों मे तो लगातार तीन चार वर्षौ से हो रहा है, हमें तो लगता है,कि हमारे बच्चों का सवाल-बादल फटना क्या होता है? न होकर यह होने वाला है--- बादल का बरसना क्या होता है?----।

    ReplyDelete
  12. आप सभी की मै आभारी हूं आपने समय यहां दिया पर जीवन है प्रकृति है यही नियति है पर सच्चा इन्सान वही है जो हर दुख हंस कर झेल ले ।

    ReplyDelete
  13. sunita ji,acchha likha hai aapne....sacchhayi bhi, darshan bhi....aur jindgi ke savaal bhi...

    ReplyDelete
  14. हम जितना भी आगे बढ़ें प्राकृतिक आपदाओं से नहीं लड़ सकेंगे...जिंदगी ऐसी घटनाओं से हमें दो-चार कराती रहती है....बस लड़ने और सहने की हिम्मत होनी चाहिए

    ReplyDelete

Sunita Sharma  Khatri : कितनी ही कहानियां हमारे जीवन के चँहु ओर बिखरी रहती हैं कुछ भुला दी जाती है कुछ लिखी जाती हैं. हर दिन सवेरा होता है, ...

life's stories