Wednesday, June 16, 2010

मुझे चलना है अभी

मुझे चलना है अभी
अन्जान राहों से गुजरना है अभी
न मंजिल का पता न सफर का पता
कोई साथ है तो बस तन्हाई मेरी,
कठिन डगर मुश्किल सफर
किसको आवाज दे कोई साज भी तो नही
कितना मायूस होता है
नादानियों पर यकीन नही होता ।
पत्थर बन गये गिरते आंसु
पलकों पर कोई तरन्नुम नही
छूता कौन जज्बातों को
सब अपनी रौ में है
चलना है अभी
अभी तो जख्मों की शुरूवात भर
कितनें पडाव आयेंगे बोझल कर जायेगें।
विवशताओ के अधियारें
ढंक लेगे मुझे एक चादर से
फिर होगा इन्तजार किसका
फूलों से सजा है दामन मेरा
कांटो से दोस्ती करते है
डरने वाले क्या खाख सफर तय करते है।
चलना है अभी
अभी पडाव नही आयेगा
अभी तो चलना शुरू किया
कौन जाने कहां सवेरा होगा
अन्तहीन इस सफर में कही तो बसेरा होगा.....................।

1 comment:

  1. pahli baar aapke blog par aaya hon , aur bahut khusi hai ki aapki rachnao ko padh raha hoon. aap bahut accha likhti hai aur specially ye kaviata to jeevan ke rang se oatpret hai .. meri dil se badhayi sweekar kijiye ..

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