कभी-कभी जिन्दगी से भाग कर कुछ पल चुरा कर सोचते है जब कभी हम किस राह पर आ खडी है जिन्दगी न वापसी का रास्ता है न कोई डगर जहां सकूंन के दो पल मिलते तब मन अकारण ही घबराता है । तन्हा खडी जिन्दगी किस की राह तकती है फिर होता है वैराग्य झूठ है हर बन्धन, माया, मोह है। क्या अपना है क्या पराया है बस इसी सोच में उम्र निकलती है साथ ही गुजर जाता है वह वक्त जो अभी तक व्यतीत हुआ अब लगता है व्यर्थ है वह जीवन जो गुजरे प्रभु बिन क्यों अन्धकार में रास्ता खोजा क्यों नही प्रभु की शरण ली एक वही तो अपना है सब उसके हाथों में ही है वह सर्वशक्तिमान है कभी संदेह हो उसकी सत्ता पर तो वह किसी न किसी रूप में खुद से परिचय करा ही देगा तब यह ही लगेगा क्यो इतना जीवन व्यर्थ गवाया उसे क्यों न सहारा माना । तुच्छ वस्तुओ में समय गवाया । आह ! ! अब कितनी शान्ति है शायद यह भी उसकी ही मरजी हो क्योकि पहले उसका ध्यान करते तो मन मृगतृष्णा में भीषण भटकता अब सब कुछ साफ कुछ भी उसकी राह से डिगा पायेगा क्योकि ईशवर जो मुझमें बसा है उसे पहचान पाना अपने वश में नही सब उसकी इच्छा पर है हम सिर्फ मूकदर्शक है इस संसार रूपी फिल्म के दर्शक मात्र ।
sahi kaha hai....
ReplyDeleteसुनीता जी,
ReplyDeleteआप वहां पहुँच गयी ,यहाँ हम सभी को पहुंचना है.
छोटी सी उम्र में इतनी परिपक्वता.
सलाम.
बस इस अध्यात्म पथ को जीवन में उतारना है.
फिर शांति ही शांति है,आनंद ही आनंद.
परमानंद.
शुभ कामनाएं..
अध्यात्मिक सुन्दर आलेख.
ReplyDeleteकिसी का एक शेर है सुनीता जी,देखिये:-
जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा क्यों मानें?
और जिसे देख लिया है वो ख़ुदा कैसे हो???,
Please accept my congratulations, very nice article, Welcome to my blog atulkushwaha-resources.Blogspot.com
ReplyDeleteAtul ..
किसी को उसकी सत्ता पर यकीन न हो तो पर वह अपनी उपस्थिति का अहसास किसी न किसी रूप मे करा ही देता फिर चाहे साइंस के कितने ही ही आविष्कार हो या मानव की कोई रचना उस शक्ति के बगैर कुछ नही हो सकते यह भी है कुछ लोग उसे प्रिय होते है माना या न मानो।
ReplyDeleteजापान में जो कुछ हो रहा है। क्या प्रकृति या ईशवर को हम नजर अन्दाज कर सकते है। मैने बचपन से लेकर अब तक मैने उसे हमेशा महसुस किया है यह बात अलग है हम माया से वशीभूत होते है उसे नही पहचान पाते।