.....last part of tum mere ho ...
मै अपने घर वापस आ चुकी थी तुम्हे छोड़ कर तुम्हारे खुबसुरत शहर को छोड कर क्यूंकि अब तुम्हे जो आना था पर क्या तुम आये ?
घर पर सब थे पर तुम नहीं थे तुम्हारी यादो के साथ वक्त बीतने लगा फ़ोन पर बाते होती रही ....चाँद को देखती तो तुम्हारे साथ देखा चाँद याद आता .... पापा के साथ तुम्हारे घर के लोगो के बाते होती ...सभी खुश थे ...........कुछ दिन ही बाकी थे हमारे मिलने के .
उस दिन में बेसब्री से तुम्हारा इन्तजार कर रही थी क्यूंकि तुम यहाँ जो आ रहें थे मेरे पास कितनो दिनों बाद तुम्हारा दीदार होगा ........!
पापा बोले सब अभी मेरे साथ चलो पर कहा अभी तो प्रशांत आने वाला है मुझे कही नहीं जाना फिर माँ के कान में कुछ बोले मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या हों रहा था मुझ से क्या छिपाया जा रहा था पर कुछ तो था उन दोनों का बुरा हाल था .
पापा हमे एक हॉस्पिटल में ले आये यहाँ क्यों पापा क्या हुआ कौन है यहाँ ....प्रशांत का सीरियस एक्सीडेंट हुआ है क्या मुझे कुछ होश नहीं ...........!
तुम्हारे मम्मी पापा ने ही पापा को फ़ोन किया था सभी हॉस्पिटल में थे ....
डॉक्टरस ने जवाब दे दिया था कुछ नहीं हों सकता था ....बाइक की रफ़्तार इतनी तेज थी की सामने से आने वाले तेज गति के ट्रक से टक्कर लगने से बच नहीं पाई .
जब मुझे होश आया तो सामने तुम थे जो सब को छोड़ कर जा चुके थे आंखे खुली थी ............मुझे देखने की चाह में .
कुछ बाकी न था ....सिर्फ वीरानिया थी.. क्या हक़ था तुम्हे सबको छोडके जाने का सिसकियो में, खुशिया तब्दील हों चुकी थी .
अतीत में जाकर सिर्फ दर्द ही मिलता है ....मैने तुम्हारे इसी शहर को हमेशा के लिए अपना लिया .कम से कम यहाँ तुम्हारी यादे तो बसी है ..जिंदगी कब रुकी है चल रही है तुम मेरे साथ न होकर के भी मेरे साथ हों मेरे मन में तुम हों सिर्फ तुम ..यहाँ कोई नहीं आ सकता ईश्वर ने तुम्हे अपने लिए बुला लिया पर मेरे मन से तुम्हे कोई नहीं जुदा कर सकता तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता यहाँ से तुम्हे कोई नही छीन सकता ....
तुम मेरे हों .................!
(This story has been published in Kathasamay . sep. 2013)
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किसी रोमांटिक कथा का मार्मिक अंत....स्वांत सु:खाय के विपरीत! !!! असहनीय
ReplyDeleteहर कहानी सुखांत नही होती |
Deletegreat
ReplyDeleteVASHIKARAN GURU
Thank you so much
DeleteThank you so much
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