.......part..4
सुबह जब आंख खुली तो बोझल थी कल कितनी दूर तक सफ़र किया मै अपनी भावुकता पर नियंत्रण क्यों नहीं करती आई एम सच अ स्टुपिड ....!
''शाम को वापस घर आई तो मम्मी पापा को देख हैरान हों गयी अचानक अभी आने का तो कोई प्रोग्राम नहीं था .माँ ने मुझे देखते ही गले लगा लिया मेरी बच्ची कैसी है, मै ठीक हूँ माँ आप दोनों कैसे हों, तुझे देख लिया अब ठीक है कितने दिनों से फ़ोन क्यों नही किया करती तो आओ करती तो न आते, कम से कम आ तो गए न . पापा काम के बारे में ,इधर उधर की पूछने लगे ,रात के खाने तक हमारी बाते चलती रही ......
सोने के समय माँ मेरे पास आ गयी उन्हें मेरा यूँ अकेले रहना पसंद नहीं मेरे विवाह न करने के फैसले से तकलीफ थी .बताने लगी मेरी उन सहेलियों के बारे में जिनके घर बस चुके थे और वे सब अपने परिवार में खुश थी .मेरा कोई भी बहाना कोई भी दलील उन्हें नहीं बदल सकती की बिना विवाह किये भी जिंदगी कट सकती है ....उनकी बाते होती रही इस बारे में, माँ प्लीज टॉपिक बदलो, यह बताओ तुम्हारी तबियत कैसी है ,तू मुझे खुश देखना चाहती है न तू अपना घर बसा ले ऐसे कब तक रहेगी ....देख तो कैसे मुरझाती जा रही है .नहीं माँ मै ठीक हूँ तुम्हे तो बस यही लगता है.... .अच्छा विवेक आया था हाँ आया था मै लगभग चिल्ला पड़ी !
पर उनका चेहरा देख चुप हों गयी फिर उनकी गोद में लेट गयी ...माँ तुम तो बेकार में चिंता करती हों मै खुश हूँ मुझे बेकार के झंझटो में न डालो .
लगता है उसने माँ को सब बता दिया की मैने उससे बात तक नहीं की तभी यह यहाँ पर आये है .उस गधे को तो ठीक करना पड़ेगा ..! मुझे पाने के खवाब देख रहा है .
मै मम्मी पापा की फ़िक्र समझ सकती थी पर क्या करू मै मजबूर हूँ प्रशांत की जगह कोई नहीं ले सकता कभी नहीं .
अगले दिन दोनों वापस चले गये शायद माँ ने पापा को सब बता दिया होगा
उनके चेहरे से मायूसी टपक रही थी .
देवानी को समझा गए मेरा ख्याल रखने को सच में उन्हें किस बात की सजा मिल रही थी . सब तुम्हारी गलती है प्रशांत..! तुम्हारी तेज रफ़्तार से चलने की आदत ने सब ख़त्म कर दिया वर्ना माँ पापा यहाँ से खुश होकर जाते हमारा भी परिवार होता .......यह अकेलेपन का दर्द न होता ..........to be cont.
आगे क्या होंगा? मस्तिष्क में कई विचार राकेट की रफ्तार से तैरते रहते हैं....
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